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संस्मरण : भारत को 21वीं सदी में ले जाने वाले राजीव गाँधी

कांग्रेस पार्टी से प्रगतिशील मुस्लिम नेताओ को उम्मीद थी कि राजीव के नेतृत्व मे मुस्लिम युवक एवं युवतिया भी देश के अग्रणी प्रगतिशील समाज का हिस्सा बन जाएगे। आरिफ़ मोहम्म्द ख़ान, सम्प्रति केरल के राज्यपाल, इसी भावना के प्रतीक है। किंतु राजीव के घनिष्ट मित्रो ने ही उनको उनकी निजी इच्छा के विपरीत साम्प्रदायिकता के घृणित चक्रव्यूह मे फँसा दिया। राजीव से अपेक्षा थी कि हिन्दुओ की महिलाओ की भाँति मुस्लिम बहनो को भी सामाजिक सुरक्षा के लिए कानून बनाने की पहल करेंगे। दहेज और ससुराल मे महिलाओ की सुरक्षा के लिए कानून बने, जिनकी भूमिका राजीव के शासन काल मे शुरु हो गई थी। तीन तलाक का ख़ात्मा भी कभी राजीव की नीति का भाग था,किंतु उनका साथ सहयोगिओ ने नही दिया।
सामाजिक मसले को साम्प्रदायिक रूप देने वालो से भयभीत हो कर उन्होने राम मंदिर का शिलान्यास किया। इस से उपजी साम्प्रदायिकता का जहर पूरे देश ने सालो तक भुगता। श्रीलंका समझौता करा कर तमिल उग्रवादियो से उनको आमने सामने खड़ा कर दिया। इस प्रकार उनके नादान दोस्तो ने राजीव की शहादत की इबारत लिख दी। भारत ने अपना एक उत्तम राजनेता खो दिया, जो भारत को 21वीं सदी की आधुनिक कंप्यूटर टेक्नालजी की राह पर ले जाना चाहता था।
कहते हैं कि राजनीति मे अपनी सोंच और रणनीति पर ही चलना चाहिए है। यह बात राजीव गाँधी के बारे मे सौ फीसदी सही थी। जब वह राजनीति की गूढता को समझने लगे, हमारे बीच से ही चले गए। आज की साम्प्रदायिकता और ढपोरशंखी राजनीति को भुगतते हुए हम सब राजीव गाँधी की याद करते है। राजीव गाँधी के पास अपार जनमत था, किंतु उनके मूर्ख साथियो सब कुछ गँवा दिया। देश की राजनीति के ध्रूवीकरण के लिए उनको ही ज़िम्मेदार माना जाना चाहिए। आज की साम्प्रदायिकता और ढपोरशंखी राजनीति को भुगतते हुए हम सब राजीव गाँधी की याद करते है। उनके पास अपार जनमत था, किंतु उनके मूर्ख साथियो ने सब कुछ गँवा दिया। देश की राजनीति के ध्रूवीकरण के लिए उनको ही ज़िम्मेदार माना जाना चाहिए। राजीव गाँधी के चमचो ने उन्हे समझाया कि आपको जनता का वोट आपकी ईमानदार छवि के कारण मिला है। ह मारे जैसे लोग उनसे दूर हो गए जो यह मानते थे कि कॉंग्रेस को बहुमत इंदिरा गाँधी को श्रृद्धांजलि वोट है।
भारतीय राजनीति मे ईमानदारी का ढोल पीट कर राजीव गाँधी के अंतरंग सहयोगी एवं वि त्त मंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने उनको ही बोफोर फील्ड गनो की खरीद के मसले मे फँसा दिया। कार्गिल युद्ध मे इनकी प्रभावी भूमिका की सभी ने सराहना की। राजीव गाँधी का गुनाह यह था कि उन्होने टेक्नॉलोजी के साथ गोल बारूद के उत्पादन का भी लाईसेस स्वीडन से ले लिया था। इस खरीद की दौड मे अमेरिकन कम्पनी से सौदा नही किया गया। हथियारो के बाज़ार मे एक दूस रे भ्रष्टाचार के आरोपो मे फसाना आम बात है। इसलिए समझदार नेता इनको लेकर कभी सफ़ाई देने की कोशिश नही करते। लेकिन राजीव गाँधी ने भोलेपन मे कह दिया कि मैने कोई कोई गलत काम नही किया। वह सही थे। इस लेखक ने स्वयं लालकृष्ण आडवाणी, जब वह भारत के गृहमंत्री थे, से पूछा था, क्या बोफोर्स के आरोप सही है उन्होने स्वीकार किया की राजीव पर लगे आरोपो मे कोई सत्यता नही है। आज उनके इस संसार से गए कई दशक बीत गए है, उन पर आरोप लगाने वालो को देश से क्षमा माँगनी चाहिए।
अब जरा राजीव गाँधी की दूरदर्शिता को देखे। उन्होने जब भारत की पुरानी जर्जर टेलीफोन व्यवस्था को बदलने के लिए पहल शुरू की तो सभी ने विरोध किया। उन्होने जब कम्प्यूटर को बढ़ावा देना शुरू किया तो देश के वामपंथी दलों और भाजपा ने इसे जन-विरोधी कहा। देशभर मे आन्दोलन हुए। संसद मे जोरदार बहसे हुई। आडवाणी जी ने कहा कि राजीव समझते है कि आम किसान खेत मे खड़े होकर मोबाइल पर बात करेगा। यह तो आडवाणी और दूसरे बडे नेताओं में कितनी नैतिकता है कि वह अपनी गलतियों पर खुलकर चर्चा करें और देश को आधुनिकता की डगर पर ले जाए।
हमारे जैसे हजारो लोगों को लगता है कि जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी डिजिटल इंडिया की बात करते है तो वह वास्तव में राजीव गाँधी के मिशन को ही आगे बढ़ा रहे हैं। भले ही वह राजनैतिक कारणों से राजीव गाँधी की तारीफ़ न कर सके, लेकिन आज सारा देश और नई पीढ़ी जानती है कि किस प्रकार इस युवा प्रधानमंत्री ने देश को 21वीं सदी मे ले जाने की भूमिका बनाई थी और आज हम इस क्षेत्र मे विकसित देशो के साथ खड़े नजर आते हैं। #
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