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नेताजी सुभाष चन्द्र बोस : एक आर्थिक चिंतक के रुप में नेताजी बोस

महापुरुष किसी जाति या धर्म विशेष की संपदा नहीं होते हैं, न ही वह संकीर्ण सोच रखनेवालों की श्रद्धा या विरोध का पात्र होते हैं। वह तो पूरे समाज या देश के उत्थान के लिए अपना जीवन उत्सर्ग करते हैं। उनका दृष्टिकोण अलग-अलग हो सकता है, राजनीति अलग-अलग हो सकती है और कार्यक्षेत्र भी। इसकारण आवश्यक है कि उनकी मूल भावना का सम्मान किया जाए और उनके प्रति आदर का भाव रखा जाए, न कि उनके योगदान पर टीका-टिप्पणी की जाए और उनके नाम पर कीचड़ उछाला जाए।
यह अत्यंत दुख का विषय है कि आज हम स5य समाज के इस सामान्य व्यवहार से भी दूर होते जा रहे हैं और महात्मा गाँधी, भगत सिंह, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू, डॉ. श्याम प्रसाद मुखर्जी, डॉ. अंबेडकर, मौलाना आजाद, सरदार पटेल और खान अब्दुल गफ्फार खान जैसे कालजयी नेताओं की योगदान पर भी प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं। शायद इस कृतघ्नता के लिए हमारी पीढ़ी को इतिहास कभी भी माफ नहीं करेगा। इस विवाद का एक दुष्परिणाम यह भी है कि हम इन महापुरुषों के विराट व्यक्तित्व के तमाम आयामों को समझने और उनसे सीखने के अवसर से भी वंचित हो जाते हैं। भगत सिंह का छोटी सी आयु में समाजवाद का अद्भुत ज्ञान, महात्मा गाँधी की गीता पर असीम विश्वास, अंबेडकर कथा मौलाना आजाद की इस्लाम धर्म और भारत के संदर्भ में उसकी भूमिका का अधिकारिक ज्ञान आज हमारे संज्ञान का भाग ही नहीं है।
इसीतरह हमें यह भी नहीं पता कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक गंभीर आर्थिक चिंतक भी थे। बहुत कम लोग नेता जी को आर्थिक चिंतन विचारक के रूप में जानते हैं उनकी आर्थिक नीति के बारे में भी लोगों को ना के बराबर जानकारी है जो उन्होंने भारत स्वतंत्र भारत के लिए तैयार की थी। अक्टूबर 1938 में कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में बोलते हुए नेताजी ने आर्थिक मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किए उससे उनके संपूर्ण क्रांतिकारी स्वरूप की एक झलक मिलती है। उन्होंने कहा कि जल्दी ही हमें उन मूर्त सिद्धांतों पर विचार करना चाहिए जिन पर आजाद भारत का सामाजिक पुनर्निर्माण होगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि आजाद भारत की मुख्य राष्ट्रीय समस्याएं गरीबी, निरक्षरता, बीमारी, कम उत्पादन और वितरण से संबंधित समस्याएं समाजवादी तरीकों से ही हल की जा सकती हैं।
नेताजी के विचारों में कृषि को वैज्ञानिक प्रदान किया जाना था ताकि भूमि उत्पादक की क्षमता में वृद्धि हो। कृषि विस्तार के साथ-साथ औद्योगिक विकास को भी नेताजी ने महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि उद्योगों के वैज्ञानिकीकरण से उत्पादन बढ़ाया जाए। पुराने तंत्र के स्थान पर नया उद्योग तंत्र विकसित किया जाए। क्योंकि पुराना आर्थिक तंत्र भारत में विदेशी शासन और विदेशी सामान के आयात के कारण जर्जर हो गया है। नेताजी की आर्थिक नीति में कुटीर उद्योग और बड़े उद्योगों में कोई अंतर्विरोध नहीं था। उनके अनुसार उद्योगों की तीन श्रेणियों कुटीर, मध्यम और बृहद के लिए लोग सोच-समझ कर सीमाएं निर्धारित की जानी चाहिए ताकि कुटीर उद्योगों को संरक्षण दिया जाए। आज लगता है कि हम नेताजी के तीन प्राथमिक लक्षण में से कम से कम एक में पूरी तरह असफल रहे हैं क्योंकि हम भारतीयों को देश के लिए बलिदान और त्याग करने को तैयार नहीं कर पाए हैं। इस मामले में आज की स्थिति आजादी पूर्व की स्थिति से भी खराब है। नेताजी के आर्थिक सिद्धांतों पर स्वतंत्र भारत में अमल तो किया गया पर वह बहुत धीरे-धीरे और काफी समय बाद। फिर हम न क्रांतिकारी मनोवृति से उन सिद्धांतों पर अमल कर पाए और ना हम में त्याग, बलिदान और ईमानदारी की भावना रही। एक क्रांतिकारी सामाजिक चेतना के अभाव में हुआ आर्थिक विकास कुछ बेमानी सा होकर रह गया है।
आज देश में आर्थिक हालत बहुत खराब है और विस्फोटक है। यदि वक्त रहते इसको संभाला नहीं गया तो देश के नौजवानों को रोजगार उपलब्ध करा पाना किसी भी सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित होगी। ऐसे में हमें नेताजी हर कदम पर याद आते हैं। यह विचार, मीडिया मैप के साथ हुई एक खास बातचीत के दौरान नेताजी सुभाष संगठन (एन.एस.एस.) के संस्थापक व सुप्रीमो अमित पांडेय जी ने रखे। उनके साथ हुई बातचीत के कुछ अंश इसप्रकार से हैं-
आप नेताजी को अपना सब कुछ मानते हैं ऐसा क्या आपके जहन में आया।
इस भू-मंडल की विराटता और नेताजी की चर्चा करनी हो तो नेताजी उस बाउंड्री से परे हैं, उन्हें किसी भी सीमा में बांधा नहीं जा सकता। यदि एक सामान्य बात कहें तो ब्रह्मांड भू-लोक के संपूर्ण प्राणियों को हर क्षण कुछ ना दे रहा है यह हमारी क्षमता पर निर्भर है कि हम उसमें से कितना ग्रहण कर पाने की पात्रता रखते हैं। नेताजी ने अपने जीवन में अभूतपूर्व क्षमता का परिचय दिया है।
नेताजी सुभाष संगठन (एन.एस.एस.) बनाने का ख्याल आपके मन में कब और कैसे आया।
वैसे तो वर्ष 2014 में देश के तमाम नौजवानों को एक साथ लेकर नेताजी के विचारधारा का प्रचार-प्रसार नेशनल यूथ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के माध्यम से किया जा रहा था, किंतु धीरे-धीरे हर उम्र के लोग इसमें जुड़ते चले गए। वर्ष 2015 में लोगों ने नेताजी सुभाष संगठन (एन.एस.एस.) की स्थापना की।
एन.एस.एस. बनाने का ख्याल आपके मन में कब और कैसे आया।
एन.एस.एस. का मुख्य उद्देश्य नेताजी के सपनों का समृद्धशाली भारत गढऩे का एक मजबूत प्लेटफार्म तैयार करना है। ताकि नेताजी के विचारधारा का प्रवाह निरंतर होता रहे। पांडेय जी ने बड़े भावुक अंदाज में कहा कि यह हमारे राष्ट्रीय कर्तव्य परायणता की पराकाष्ठा होगी कि हम नेताजी के बताए हुए मार्ग का अनुसरण कर दो कदम साथ चले।
एन.एस.एस. के माध्यम से आप देश की आम जन मानस व युवा पीढ़ी को क्या संदेश देना चाहते हैं।
हम एन.एस.एस. के माध्यम से यह संदेश देना चाहते हैं कि राष्ट्र को सशक्त व बेहतर बनाने के लिए देश के हर नागरिक को अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए जीवन व्यतीत करना चाहिए, तभी हम एक समृद्ध देश का सपना साकार कर सकेंगे। #
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