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रक्षाबंधन : भाई-बहन के अटूट रिश्ते का बंधन, चलो एक रक्षाबंधन ऐसे भी मनाएं

रक्षाबंधन सारे देश में मूलतः भाई–बहन के त्यौहार के रुप में मनाया जाता है। इस अवसर पर बहने अपने भाइयों की कलाई में राखी बांधती हैं और मिठाई खिलाती हैं और भाई उन्हें कुछ उपहार देते हैं। कहीं-कहीं पर ब्राह्मण लोग अपने जजमानों को भी राखी बांधते है, जिसकी मूल भावना यह होती है कि सबल व सशक्त व्यक्ति कमजोर और शास्त्र विद्वानी लोगों की रक्षा करें। पर इस पारम्परिक तौर तरीके से अलग हटकर ब्रह्मकुमारी बहने रक्षाबंधन को एक शांति, प्रेम और सामंजस्य के पर्व के रुप में मनाती हैं। जिसमें धर्म, जाति और वर्ग की कोई सीमा नहीं होती है। यह वास्तव में अनुकरणीय है जो रक्षाबंधन के पर्व को एक नया आयाम देता है। ब्रह्मकुमारी बहनों की धार्मिक पर्व मनाने की विधि अनोखा और अनूठा है। चाहे ओ होली या दीवाली हो, या फिर राखी या जन्माष्टमी, ब्रह्मकुमारी बहने इन त्यौहारों के आध्यात्मिक सार मर्म को जीवन में धारण करने की संदेश और प्रेरणा देतें है।
जैसे वे होली पर्व पर लोगों को बीती को बीती यानी जो हो चुका है उसे 'हो ली' अर्थात पूर्ण विराम करने की शिक्षा देतें हैं, तो दीवाली पर स्थूल दिया जलाने के साथ साथ रूहानी ज्ञान और राजयोग के द्वारा आत्म दीपक जगाने की संदेश देतें हैं। ऐसे जन्माष्टमी उत्सव को देहधारी देवता कृष्ण के साकार जन्म के साथ साथ निराकार ज्योति स्वरूप परमात्मा, सत्यम शिवम् सुंदरम के सृष्टि पर दिव्य अवतरण उत्सव के रूप में भी मनातें हैं ब्रह्मा कुमारी बहने। राखी का त्यौहार तो बहने अति दिव्य और अलौकिक रूप में मनातें हैं। न ही केवल अपनी रिश्ते के भाईयों को, अपितु समाज के सभी जाति, धर्म, वर्ग, कारोबार और संप्रदाय के भाईयों को रक्षा सूत्र में बांधती हैं। ब्रह्मकुमारी बहने राखी के अवसर पर जेल, अनाथ आश्रम, अपंग संस्थान, नारी निकेतन तथा धार्मिक संस्था आदि में भी जाकर परमात्मा के तरफ से रक्षा सूत्र के रुप में लोगों को राखी बांधती हैं। साथ ही राखी के गूढ़ आध्यात्मिक अर्थ को समझा कर जीवन और समाज में आत्मीय शांति, स्नेह, सदभावना, सुख, स्वास्थ्य, समरसता और सुरक्षा की वातावरण निर्माण करने की गुर सिखाती हैं। क्योंकि ब्रह्मकुमारी शिक्षा के अनुसार राखी का त्यौहार सभी मनुष्य आत्माओं के सच्ची और सदा रक्षक निराकार परमात्मा के साथ संबंधित है। वास्तव मैं, परमात्मा ही सही ईश्वरीय ज्ञान और सहज राजयोग के सूत्र द्वारा मनुष्य आत्माओं को जीवन में सच्ची सुख शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि प्राप्त करने तथा विकारों और विपत्ति से सुरक्षा प्राप्त करने मन वचन और कर्म से पवित्रता का प्रतिज्ञा कराते हैं। इसलिए ब्रह्मकुमारी बहने, महिलाओं को भी राखी बांधते हैं, ताकि कन्याएं और माताओं के आंतरिक सशक्तिकरण हो तथा आत्म रक्षा करने हेतु आध्यात्मिक शिक्षा से आत्मबल, आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता प्राप्त हो।
बहने जब भाइयों कि कलाई मैं राखी बांधते हैं, तो भाइयों को पवित्रता का प्रतिज्ञा कराते हैं और उनसे कोई भी नशा, अवगुण या कमजोरी को इस पावन अवसर पर परमात्मा को समर्पित कर देने की संकल्प कराती हैं। ब्रह्मकुमारी बहने राखी बांधने से पहले भाईयों को आत्मिक स्मृति का तिलक लगाते हुए उन्हें आत्मिक दृष्टि, वृत्ति और व्यवहार अपनाने को प्रेरित करती हैं, ताकि आत्मिक रूप में हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई आपस में है भाई-भाई का प्रेम, सदभावना और कोमी एकता को बढ़ावा मिले।
राखी बांधने के बाद बहने भाइयों के मुख मीठा कराते हुए वाणी को मधुर, शालीन, सभ्य और सुखदाई बनाने की प्रेरणा देते हैं। अंत में, ब्रह्मकुमारी बहने भाइयों से खर्ची के रूप में न तो पैसा न कोई स्थूल गिफ्ट स्वीकार करते हैं, अपितु भाईयों को परेशान या तंग करने वाली कोई भी बुरी या अहितकारी आदत को परमात्मा के नाम पर अन्दर ही अन्दर दान करने की संकल्प कराती हैं। ऐसी सर्व के कल्याण करने वाली आध्यात्मिक राखी बांधती है ब्रह्मकुमारी बहने और ऐसी अलौकिक रूप में रक्षाबंधन का त्यौहार मनाती है, जो की बहुत ही प्रासंगिक और आज के समय की मांग है। #
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