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अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य : ट्रम्प का भारत प्रेम : हकीकत या फसाना

तो सवाल यही उठता है कि क्या राष्ट्रपति ट्रंप पहले ऐसे अमेरिकी नेता हैं जो भारत के साथ सबसे अच्छी दोस्ती का दम भरते हैं? या फिर ट्रंप का ये भारत प्रेम महज वक्ती है, एक छलावा है, जिसे वो भी बखूबी जानते हैं और भारत भी जानता है। ह्यूस्टन में अपने भाषण में ट्रंप ने ये भी कबूल किया कि हर प्रवासी भारतीय पर उन्हें गर्व है और ये भी कहा कि भारत और अमेरिका के सपने समान हैं। बस यहीं से तो साफ होती है ट्रंप के भारत प्रेम की हकीकत। तमाम अखबारों में, मीडिया में इस बात की जमकर चर्चा हो चुकी है कि ट्रंप आखिरकार ह्यूस्टन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम में क्यों गये? इसके पीछे पीएम मोदी के साथ ट्रंप के अच्छे संबंधों और कथित 'दोस्ती' की बात महज भुलावा ही हो सकती है और सिर्फ कहने की बात हो सकती है। असल में ट्रंप को अच्छी तरह पता है कि अमेरिका में बसे 1 प्रतिशत (करीब 32 लाख) हिंदुस्तानियों की अहमियत क्या है? और ये भी माना जाता है कि ह्यूस्टन अमेरिका के उन इलाकों में से है जहां भारतीय मूल के उन लोगों की तादाद अच्छी खासी है जो अगले साल नवंबर में होनेवाले अमेरिका के आगामी राष्ट्रपति चुनाव को जरूर प्रभावित कर सकते हैं। तो भला उन लोगों को रिझाने, लुभाने और उनके बीच अपने पक्ष में माहौल बनाने का बेहतरीन मौका राष्ट्रपति ट्रंप कैसे छोड़ सकते थे? सच्चाई तो यही है कि ट्रंप का भारत प्रेम भारतवंशियों के वोटों से ही जुड़ा है, जिन पर उनकी निगाहें अगले राष्ट्रपति चुनाव के लिए टिकी हैं। ये बात पहले से सामने आ चुकी है अमेरिकी भारतीय समुदाय का रुझान ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी के बजाय डेमोक्रेट पार्टी की ओर ही रहा है। तो उन्हें तोड़ने और अपनी ओर जोड़ने की एक कोशिश करने का मौका भला ट्रंप कैसे चूकते? आपको याद होगा 2016 के राष्ट्रपति चुनाव के प्रचार के दौरान ट्रंप ने पीएम मोदी के उस नारे को अपने लिये इस्तेमाल करके भारतीयों के बीच अपने लिए माहौल बनाने की कोशिश की थी और हिंदी शब्दों का प्रयोग करते हुए कहा था- अबकी बार ट्रंप सरकार। उसी नारे को इस बार प्रधानमंत्री मोदी ने ह्यूस्टन के मंच से ट्रंप के लिए दोहरा दिया- अबकी बार ट्रंप सरकार, और ट्रंप को गदगद कर दिया।
ह्यूस्टन के मंच से ट्रंप ने चाहे कितना ही भारत का गुणगान किया हो, लेकिन सबको पता है कि ट्रंप की हकीकत क्या है। अपनी संरक्षणवादी नीतियों और कारोबारी मानसिकता के लिए भली-भांति जाने जाते हैं ट्रंप। 2016 के चुनाव के दौरान भी 'अमेरिका फर्स्ट' से लेकर अमेरिकियों के लिए सब कुछ करने के अपने आक्रामक वादों के कारण ट्रंप डेमोक्रेट उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन को हराने में कामयाब रहे। वहीं, चुनाव के बाद सत्ता में आने पर भी कभी एच-1बी वीज़ा, तो कभी टैरिफ के मामलों पर ट्रंप का रवैया भारत विरोधी ही दिखा। हालांकि, भारत सरकार ने भी उनके साथ जैसे-को-तैसा का बर्ताव किया और कहीं न कहीं ट्रंप को ये लगने लगा होगा कि भारत के साथ डीलिंग उतनी आसान नहीं है। हालांकि, भारत की भी अपनी मजबूरियां हैं जिनकी वजह से ट्रंप जैसी शख्सियत को साधे रखना बेहद जरूरी लगता है। खासतौर से ऐसे समय में, जबकि कश्मीर के नाजुक मुद्दे को लेकर हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान को पटखनी देनी है, तो ट्रंप को साधे रखना काफी जरूरी है। हालांकि, 'बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना' की तरह कश्मीर पर मध्यस्थता की मंशा जताकर ट्रंप ये जाहिर करते रहे हैं कि वो इस बहाने दुनिया में अपनी इज्जत बढ़ाना चाहते हैं, या फिर पाकिस्तान को बहलाना चाहते हैं। लेकिन, भारत ने साफ कर दिया कि ऐसी कोई बात मंजूर नहीं, तो ट्रंप को अपने तेवर संभालने पड़े। अफगानिस्तान के मोर्चे पर पाकिस्तान की मदद लेने की कोशिश में जुटे ट्रंप ने शुरुआत में कश्मीर मामले पर बयान देकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के दर्द पर मरहम लगाने की कोशिश जरूर की, लेकिन अब शायद उन्हें ये समझ में आ गया है कि पाकिस्तान की मदद करके कोई फायदा नहीं होनेवाला। ह्यूस्टन के भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 9/11 और 26/11 के हमलों का जिक्र करके अमेरिका को साफ-साफ जता दिया कि पाकिस्तान एक ऐसा आतंकी देश है, जिसका दंश अमेरिका भी झेल चुका है। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप इसे कैसे नजरअंदाज कर सकते हैं?
इसके अलावा, कारोबारी मोर्चे पर अमेरिका के साथ सहयोग का रुख अपनाकर भी भारत ने ट्रंप को अच्छे संबंधों का ही संदेश दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे में अमेरिकी कंपनी टेलुरियन के साथ भारतीय कंपनी पेट्रोनेट का 50 लाख टन एलएनजी (LNG) का सौदा छोटा नहीं है।
इससे भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में काफी मदद मिलेगी। वहीं, रक्षा संबंधी सौदों में भी भारत की ओर से अमेरिका को रूस और दूसरे कारोबारी देशों के साथ तरजीह न सही, बराबरी का दर्जा तो दिया ही जा रहा है। और आनेवाले दिनों में और भी ऐसे समझौते हो सकते हैं जिनमें अमेरिका का तो फायदा होगा ही, भारत को भी नुकसान नहीं होगा। ऐसे में चतुर कारोबारी ट्रंप को पता लग गया है कि भारत जैसे विशाल देश के साथ प्रेम का रुख बरकरार रहे तो फायदा ही है। और भारत के 'चतुर' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी राष्ट्रपति ट्रंप की कमजोरी को बखूबी समझते हैं, लिहाजा उसी तरह से चालें चलते हैं ताकि ट्रंप को साधते हुए दूसरे मोर्चों पर कामयाबी हासिल करें।
रही बात ट्रंप के भारत प्रेम की, तो साफ है कि ट्रंप का प्यार या दुराव जरूरतों पर ही आधारित है। भारत के साथ जब तक अमेरिका की या ट्रंप की जरूरतें पूरी होती हैं, तब कर सब चंगा ही रहेगा, लेकिन, अगर भारत से कभी फायदा नहीं दिखे तो ट्रंप के मनोभाव बदलने में भी देर नहीं लगेगी, ये मानकर चलना चाहिए। #
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