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मीडिया मंथन : पत्रकारिता के समक्ष कई अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियां मुंहबाएं खड़ी हैं, आखिर क्या है समाधान

दिसम्बर 2019 दुनिया की मीडिया और राजनीति के इतिहास मे हमेशा याद किया जाएगा, ब्रिटेन मे अनुदारवादी दक्षिणपंथी दल, कॉनसरवेटिव पार्टी की जीत ने यह साबित कर दिया है कि आम आदमी अब सिर्फ़ तमाशबीन की तरह व्यवहार करता है। एक ऐसा व्यक्ति जिसे झूठी ख़बरे लिखने पर निकाला गया हो, उसका दिसम्बर 2019 मे प्रधानमंत्री बनना दुनिया की मीडिया और राजनीति के इतिहास मे हमेशा याद किया जाएगा, ब्रिटेन मे अनुदारवादी दक्षिणपंथी दल, कॉनसरवेटिव पार्टी की जीतने यह साबित कर दिया है कि आम आदमी अब सिर्फ़ तमाशबीन की तरह व्यवहार करता है।
एक ऐसा व्यक्ति जिसे झूठी ख़बरे लिखने पर निकाला गया हो, वह प्रधानमंत्री बन जाता है। प्रधानमंत्री बोरिस जान्सन को, जिन्हें गलत खबरे के लिए निकाला गया था, चुनने वाली शत प्रतिशत शिक्षित जनता है। मतदाता ऐसे व्यक्ति को जिता देते है, जिससे ग़रीबो को मिलने वाली फ्री इलाज की सुविधा समाप्त हो जाएगी। ग्रेट ब्रिटेन की एकता भी खतरे मे प़ड गई है। बोरिस ज़ानसन की ब्रेक्सिट नीति अर्थात यूरोपियन यूनियन की सदस्यता से अलग होने से ब्रिटेन की एकता को लगने वाले आघात की चर्चा ब्रिटिश मीडिया मे विस्तार से हुई, लेकिन इसका असर चुनाव पर नही दिखाई दिया। यह सभी जानते है कि आयरलॅंड और स्कॉटलैंड बोरिस ज़ानसन की ब्रेक्सिट नीति से खुश नहीं है। लगभग इसी तरह का व्यवहार पड़ोसी देश पाकिस्तान मे दिखाई दिया। पढ़ी-लिखी जनता ने जो किया उससे सिर्फ़ यही लगा कि हम सिर्फ़ तमाशबीन हैं। मीडिया की भूमिका भी अब नही रही है।
क़ानून के रखवाले वकीलों ने लाहौर के सबसे बड़े अस्पताल पर धावा बोल दिया। इसमे महिला वकीलो ने जो काम किया उससे कोई भी सिविल समाज सिर्फ़ शर्मिंदा हो सकता है। महिला वकीलों ने अस्पताल का मुख्यद्वार खोल दिया और उनके पुरुष साथी अंदर आ गए। उन्होने जो किया वह तो किसी हमलावर सेना के सिपाही भी नही करते हैं। नौजवान वकील महिला और पुरुष वार्डों मे घुस गए। डाक्टरो की पिटाई के साथ साथ उन्होने मरीज़ो को जिंदा रखने के लिए लगेवेंटीलेटर और आक्सीजन की नालिया निकाल दी। इसमे कितने मरीजो की जान गई, इसका पूरा विवरण अभी तक नही मिल सका है। प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने सिर्फ़ यह हुकुम दिया कि इसमसले पर मीडिया अधिक ध्यान न दे। वह खुद विदेश चले गए। अदालते भी इन अपराधी वकीलो के खिलाफ कारवाई करने मे हिचकिचा रही हैं।
पिछले दिनो दिल्ली मे पुलिस और वकीलों के बीच हिंसा हुई। इन घटनाओं से यह लगता है कि हमारा समाज एक ऐसी दिशा मे जा रहा है, जो सिर्फ़ तमाशबीन है और मानवता का कोई स्थान नही रह गया है। अयोध्या मे मंदिर बनाने के उत्साह में हम गोरखपुर के उन बच्चों को भूल गए, जिनकी मौत आक्सीजन की सप्लाई न होने से हो गई थी। आजतक उन अफसरो के खिलाफ कोई कारवाई नही हुई, जिन्होने जानबूझकर ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कम्पनी को भुगतांन समय पर नही किया था।
मीडिया की घटती भूमिका का कारण सारी दुनिया मे मीडिया प्रबंधन पर ज़ोर है। ब्रिटेन मे गलत खबर लिखने वाला प्रधानमंत्री बन जाता है। पाकिस्तान मे कई बार पत्रकारों को अगवा कर लिया जाता है, पत्रकार को हथकड़ी लगाई जा चुकी है। दो बरस पहले, उस समय ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थे रेसामे ने आरोप लगाया था कि रूस ब्रिटिश चुनावों मे मीडिया के जरिए चुनावों को प्रभावित कर रहा है। मीडिया एक प्रकार का आयुध है, जिसका सभी फायदा उठाना चाहते है, लेकिन इसकी भी सीमाएं हैं, किन्तु इसका अर्थ यह भी हुआ कि पत्रकारो को प्रभावित किया जा सकता है।
भारत मे तमाम पत्रकारों की हत्याए हुई है। अमरीका मे भी मीडिया से राष्ट्रपति ट्रंप खफा है। लगता है कि अब सभी को सहयोग करने वाले पत्रकारों की जरुरत है। देश मे इस समय फ्रीलांस पत्रकारों की संख्या नौकरी करने वालो से कही अधिक है। अब पत्रकारो को कभी मालिक-संपादक और कभी मार्केटिंग सेक्शन के नीचे काम करना पड़ता है। पत्रकारिता आज कठिन दौर से गुजर रही है। अमरीका से लेकर भारत तक यह प्रोफेशन खतरे में है। जिस प्रकार राजनीति और धर्मसेवा की भावना से हट गए है, पत्रकारिता भी अवसरवादियो की चपेट मे आ गई है। श्रमजीवी पत्रकार मजबूर है कि वह उनके नीचे काम करे जो विषय को समझते नही है।
दुनिया मे सबसे बडा कष्ट एक प्रोफेशनल को क्या हो सकता है? काफी सोंच-विचार के बाद इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि नौकरी करने और बचाए रखने के लिए किसी मूर्ख के मातहत काम करना। यदि इस तर्क पर और अधिक विचार किया जाए तो पता चलेगा कि इस कष्ट से सबसे अधिक पीड़ित हमारी प्रशासनिक सेवा के अधिकारी, मंत्रीगण और तमाम राजनेता हैं। मज़े की बात यह है कि इसके लिएवे अपनी तकलीफो का कारण पत्रकारो को मानते हैं। इसका हल उन्होने यह निकाला है कि सिर्फ़ सकारत्मक या पॉजिटिव न्यूज प्रसारित एवं प्रकाशित करनी या छापनी चहिए। उनके विचारो मे अगर अख़बारों मे पॉजिटिव न्यूज छपे तो शासन करना आसान हो जाएगा और प्रशासन ठीक से चल सकेगा। इनके हिसाब से राजनीति मे गिरावट और कुशासन का कारण सिर्फ़ मीडिया है।
वर्ष 1923 के गोपनीयता अधिनियम की जगह सूचना का अधिकार कानून 1905 के खिलाफ भी करीब करीब यही तर्क सूचना के अधिकार के खिलाफ भी दिया जाता है। यह सही है कि इनके दुरुपयोग की शिकायते मिलती है और मिलती रहेंगी, किंतु इसका अर्थ यह नही कि इनको समाप्त कर दिया जाए।
कुछ वर्षों पूर्व एक हिन्दी फिल्म देखी थी तीन मूर्खो यानी थ्री ईडियट्स की कहानी। इसमे हीरो की भूमिका मे थे आमिर ख़ान, जिनका हर संकट मे एक ही तकिया कलाम होता है, वह कहते हैं ऑल इस वेल यानि सबकुछ ठीक-ठाक है।
आज की सरकारों का अमरीका से लेकर इंग्लैंड, पाकिस्तान और अब भारत मे आम जुमला है, पॉजिटिव न्यूज़ यानी जनता को सिर्फ़ यह बताओ, ऑलइसवेल। इसलिए परेशान होने की ज़रूरत नही है। अख़बारो मे ऑल इस वेल छापो भारत के विकास की गति बढ़ जाएगी, इमरान ख़ान पाकिस्तान को रियासत मदीना बना देंगे, ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन से अब आसानी से अलग हो जाएगा। ट्रंप फिर सफल हो जाएँगे। सिर्फ़ पत्रकार अगर पोजिटिव हो जाए। #
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